उद्घाटन से पहले ही बहा भंडारा बाईपास का तटबंध, 650 करोड़ की लागत से बना हाईवे; सांसद पडोले ने लगाए भ्रष्टाचार के आरोप
भंडारा बाईपास की पहली ही बारिश में पोल खुली, तटबंध बहा; सांसद पडोले ने निर्माण में भ्रष्टाचार का लगाया आरोप
भंडारा: जिले में 650 करोड़ रुपये की लागत से बना बहुप्रतीक्षित भंडारा बाईपास पहली ही बारिश में बुरी तरह प्रभावित हो गया है। मुंबई-कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग पर बनाए गए इस 15 किलोमीटर लंबे बाईपास की निर्माण गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि तेज बारिश के चलते बाईपास की सुरक्षा के लिए बनाए गए सीमेंट तटबंध बह गए। इससे तटबंध के नीचे की मिट्टी भी पानी में बहने लगी है, जिससे सड़क की मजबूती पर खतरा मंडराने लगा है।
उद्घाटन से पहले ही सड़क हुई जर्जर
यह बाईपास भंडारा शहर से गुजरने वाले भारी वाहनों की भीड़ और उससे होने वाली दुर्घटनाओं को कम करने के लिए बनाया गया था। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की पहल पर इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया था। हालांकि, अभी इसका औपचारिक उद्घाटन नहीं हुआ है, लेकिन जनता की सुविधा को देखते हुए इसे हाल ही में अस्थायी रूप से खोल दिया गया था।
मंगलवार और बुधवार को जिले में हुई मूसलधार बारिश के चलते बाईपास की हालत बिगड़ गई। सुरक्षा तटबंधों के बहने से सड़क के नीचे की नींव पर असर पड़ा है, जो भविष्य में किसी बड़े खतरे का संकेत दे रहा है।
सांसद पडोले का गंभीर आरोप
घटना की जानकारी मिलते ही भंडारा-गोंदिया लोकसभा क्षेत्र के सांसद डॉ. प्रशांत पडोले मौके पर पहुंचे और बाईपास निर्माण में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इतने बड़े बजट में बनी सड़क का इस तरह बह जाना स्पष्ट करता है कि निर्माण में घटिया सामग्री का इस्तेमाल हुआ है।
“ये सीधा जनता की जान से खिलवाड़ है। निर्माण एजेंसी और संबंधित विभाग की लापरवाही के चलते यह हालात बने हैं,” सांसद पडोले ने कहा। उन्होंने मांग की कि दोषी ठेकेदारों और अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाई की जाए और मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए।
जनता में नाराजगी
इस हादसे के बाद स्थानीय नागरिकों में भी नाराजगी देखी जा रही है। करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद यदि सड़क पहली ही बारिश में जवाब दे दे, तो ऐसे बुनियादी ढांचे पर कैसे भरोसा किया जाए—यह सवाल अब आम लोगों के मन में उठ रहा है।
भविष्य में इसी तरह की और घटनाओं से बचने के लिए अब इस प्रोजेक्ट की पारदर्शी जांच और ज़िम्मेदारों की जवाबदेही तय करना ज़रूरी हो गया है।