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‘घेऊन जा गे मारबत’ के नारों से गूंजा इतवारी, काली-पीली मारबत का हुआ भव्य मिलन; डोनाल्ड ट्रंप का बडग्या बना आकर्षण का केंद्र

‘घेऊन जा गे मारबत’ के नारों से गूंजा इतवारी, काली-पीली मारबत का हुआ भव्य मिलन; डोनाल्ड ट्रंप का बडग्या बना आकर्षण का केंद्र

नागपुर में पारंपरिक मारबत उत्सव की धूम, काली-पीली मारबतों का ऐतिहासिक मिलन; डोनाल्ड ट्रंप पर बना व्यंग्यात्मक बडग्या बना आकर्षण का केंद्र

नागपुर, 24 अगस्त — उपराजधानी नागपुर में शनिवार को पारंपरिक मारबत महोत्सव की धूम देखने लायक थी। रंग-बिरंगे जुलूस, पारंपरिक ढोल-ताशे और गूंजते नारों के बीच शहर भर से निकली काली, पीली और लाल मारबतें जब इतवारी के नेहरू पुतला चौक पर एकत्रित हुईं, तो यह नज़ारा किसी भव्य सांस्कृतिक समारोह से कम नहीं था। हजारों की भीड़ ने इस ऐतिहासिक आयोजन को साक्षात देखा और ‘घेऊन जा गे मारबत’ के नारों से आसमान गूंज उठा।

परंपरा में आधुनिकता का संगम

हर साल पोला के दूसरे दिन मनाया जाने वाला मारबत उत्सव नागपुर की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। 19वीं सदी से चली आ रही इस परंपरा में सामाजिक बुराइयों और समसामयिक मुद्दों पर व्यंग्य के रूप में मारबत और बडग्या बनाए जाते हैं। इस साल भी लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लेकर इस आयोजन को भव्य जनसमूह में तब्दील कर दिया।

शहर के विभिन्न हिस्सों से पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ निकले जुलूसों ने पूरे वातावरण को जीवंत बना दिया। खास पल तब आया जब काली मारबत ने नेहरू चौक पर पहुंचकर पीली मारबत को झुककर अभिवादन किया। यह दृश्य जैसे ही हुआ, चारों ओर से ‘घेऊन जा गे मारबत’ के नारों की गूंज ने माहौल को पूरी तरह भक्तिमय और उत्साही बना दिया।

ट्रंप का बडग्या बना चर्चा का विषय

हर वर्ष की तरह इस बार भी बडग्या—जो समाज, राजनीति या वैश्विक घटनाओं पर आधारित व्यंग्य होते हैं—मंच पर छाए रहे। इस बार का सबसे चर्चित बडग्या अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर आधारित था। उनके कार्यकाल के दौरान भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ का प्रतीक बनकर यह बडग्या जनता को व्यंग्यात्मक संदेश दे रहा था कि भारत अब दबाव नहीं सहता।

स्थानीय कलाकारों ने इस बडग्या को इस तरह तैयार किया था कि वह ना सिर्फ लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा था, बल्कि संदेश भी दे रहा था—“भारत आत्मनिर्भर है और किसी के आगे झुकने वाला नहीं।”

नागपुर बना सांस्कृतिक केंद्र

मारबत महोत्सव ने न सिर्फ नागपुर, बल्कि पूरे विदर्भ क्षेत्र को एक सांस्कृतिक रंगमंच में बदल दिया। बच्चे, बुज़ुर्ग, महिलाएं—हर वर्ग के लोगों ने इस आयोजन में सक्रिय भागीदारी की। पारंपरिक वेशभूषा, सजावट और सामाजिक चेतना से जुड़ी प्रस्तुतियों ने यह साबित कर दिया कि यह उत्सव केवल परंपरा नहीं, बल्कि जनभावना और सामाजिक चेतना का सशक्त माध्यम बन चुका है।

नागपुर का मारबत उत्सव एक बार फिर यह दिखा गया कि कैसे परंपरा और आधुनिक संदेश मिलकर समाज को नई दिशा दे सकते हैं।

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