पश्चिम विदर्भ में सात महीनों में 598 किसानों की आत्महत्या, फसल बर्बादी और कर्ज बना मौत की वजह
पश्चिम विदर्भ में किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला थमा नहीं, सात महीनों में 598 ने तोड़ा दम
अमरावती, 21 अगस्त — महाराष्ट्र के पश्चिम विदर्भ से एक बार फिर किसान आत्महत्याओं की चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। जनवरी 2025 से जुलाई 2025 तक यवतमाल, अकोला, वाशिम, बुलढाणा और अमरावती जिलों में कुल 598 किसानों ने आत्महत्या कर ली। इस दर्दनाक आँकड़े के पीछे लगातार फसलें खराब होना, कर्ज का बोझ, उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कमी और सरकारी योजनाओं की असफलता जैसे कई कारण बताए जा रहे हैं।
सबसे अधिक आत्महत्याएं यवतमाल में
इन आंकड़ों में यवतमाल जिला सबसे आगे है, जहां अकेले 196 किसानों ने आत्महत्या की। यह जिला पहले से ही किसानों की आत्महत्या को लेकर चर्चा में रहा है, और एक बार फिर यह क्षेत्र संकट का केंद्र बनकर उभरा है।
कर्ज और खेती की असुरक्षा ने छीना जीवन
ज्यादातर आत्महत्या करने वाले किसान छोटे या सीमांत किसान थे, जो निजी साहूकारों और बैंकों से लिए गए कर्ज को चुकाने में असमर्थ थे। फसलों में लगातार हो रही बर्बादी, कीटों का प्रकोप और अनियमित बारिश ने किसानों की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह झकझोर दिया। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि कई किसानों ने मौत को ही एकमात्र रास्ता समझा।
सरकारी योजनाओं की पहुंच पर सवाल
किसानों का आरोप है कि फसल बीमा योजना और कर्जमाफी की घोषणाएं केवल कागजों पर सीमित हैं। जमीनी स्तर पर इनका लाभ समय पर नहीं मिल रहा, जिससे संकट और गहराता जा रहा है। वहीं, किसानों को गारंटीकृत फसल मूल्य न मिलने से उनकी आय और भी अस्थिर हो गई है।
परिवारों पर दोहरी मार
आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को अब दोहरी मार झेलनी पड़ रही है — एक ओर आर्थिक तंगी, दूसरी ओर सामाजिक उपेक्षा। कई परिवारों के पास दैनिक जरूरतें पूरी करने के भी साधन नहीं बचे हैं, जिससे वे और अधिक बदहाली की ओर बढ़ रहे हैं।
समाधान की राह तलाशना जरूरी
किसान संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि यदि अब भी ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट विकराल रूप ले सकता है। राहत पैकेज, सिंचाई सुविधा में सुधार, पारदर्शी बीमा व्यवस्था और वास्तविक कर्ज माफी जैसे उपायों को जल्द लागू करना आवश्यक है।