Headline
मुख्यमंत्री फडणवीस का आरोप: “अति वामपंथियों से घिरे हैं राहुल गांधी, उन्हीं के इशारे पर कांग्रेस नेता कर रहे विरोध”
नागपुर एयरपोर्ट को उड़ाने की धमकी, सुरक्षा एजेंसियां सतर्क
जन्मदिन पर गडचिरोली पहुंचे मुख्यमंत्री फडणवीस, कोनसारी स्टील प्लांट समेत कई परियोजनाओं का किया उद्घाटन
एयर इंडिया ने पूरी की बोइंग विमानों की जांच, फ्यूल स्विच में नहीं मिली कोई तकनीकी खामी
मैनचेस्टर टेस्ट के लिए Irfan Pathan ने चुनी Team India की प्लेइंग 11, किए तीन बड़े बदलाव
62 साल की सेवा के बाद विदाई की ओर मिग-21, क्यों कहा जाता है इसे ‘उड़ता हुआ ताबूत’?
दिनभर उमस और गर्मी से बेहाल रहे लोग, शाम की बारिश ने दिलाई राहत
घरकुल लाभार्थियों को बड़ी राहत: अमरावती जिले में मुफ्त रेत वितरण अभियान को मिली रफ्तार
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से दिया इस्तीफा, देश में राजनीतिक हलचल तेज

मुंबई सीरियल ब्लास्ट: 19 साल बाद बेकसूर साबित हुए 4 आरोपी, अमरावती जेल से रिहा

मुंबई सीरियल ब्लास्ट: 19 साल बाद बेकसूर साबित हुए 4 आरोपी, अमरावती जेल से रिहा

19 साल बाद आया इंसाफ: मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले में चार निर्दोषों की रिहाई, जांच प्रक्रिया पर उठे सवाल

अमरावती/मुंबई:
मुंबई लोकल ट्रेन में 11 जुलाई 2006 को हुए दिल दहला देने वाले सिलसिलेवार बम धमाकों में 180 से अधिक लोग मारे गए थे। इस हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया था, और उसके बाद शुरू हुई जांच में कई गिरफ्तारियां की गईं। लेकिन अब, करीब दो दशक बाद, इस मामले ने एक नया मोड़ ले लिया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में चार आरोपियों—तनवीर अहमद, मोहम्मद माजिद, सोहेल मोहम्मद शेख और जमीर अहमद—को निर्दोष करार देते हुए रिहा कर दिया है। चारों को अमरावती सेंट्रल जेल से रिहा किया गया।

इन आरोपियों ने 2015 से अमरावती जेल में सजा काटनी शुरू की थी। 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर करने के बाद उनकी कानूनी लड़ाई शुरू हुई, जो अब रंग लाई है। इस मुकदमे में वकीलों की टीम—एडवोकेट सिमी शेख, एडवोकेट तंबोली, एडवोकेट युग चौधरी, एडवोकेट वहाब खान और एडवोकेट शाहिद नदीम—ने अहम भूमिका निभाई।

रिहाई के बाद चारों ने अपने परिजनों से मुलाकात की और रातोंरात मुंबई के लिए रवाना हो गए। जेल के बाहर उनके परिवारजन भावुक माहौल में उन्हें गले लगाते नजर आए। यह पल न्याय की जीत और एक लंबी कानूनी लड़ाई के अंत का प्रतीक बना।

हालांकि, महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। फिर भी यह सवाल उठना लाजमी है कि यदि ये चारों निर्दोष थे, तो उन्हें 19 साल तक जेल में क्यों रखा गया? इस फैसले ने जांच एजेंसियों की भूमिका और प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

इन 19 वर्षों में न केवल इन चारों ने जेल की सलाखों के पीछे अपनी जिंदगी गुजारी, बल्कि उनके परिवारों ने भी सामाजिक कलंक, मानसिक यातना और अपनों से दूरी का दर्द झेला। अब जबकि वे निर्दोष साबित हो चुके हैं, उनके पुनर्वास और न्यायिक प्रणाली की जवाबदेही को लेकर नई बहस छिड़ना तय है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top