कागजों में 2013 में ‘दफन’, हकीकत में जिंदा निकला अफजाल — फार्म में दर्शाया गया भाई भी निकला फर्जी
कागजों में मृत, असल में जिंदा – बनभूलपुरा में अफजाल अली के नाम पर फर्जीवाड़ा, कब्रिस्तान कमेटी के दो सदस्य नामजद
हल्द्वानी (बनभूलपुरा): एक चौंकाने वाले खुलासे में बनभूलपुरा क्षेत्र के अफजाल अली को कागजों में मृत घोषित कर दिया गया, जबकि वह हकीकत में जिंदा है और फिलहाल जमानत पर बाहर है। मामला 2013 से जुड़ा है, जब कब्रिस्तान कमेटी ने अफजाल को कथित रूप से दफन करने का दावा किया था। इसके बाद 2014 में एक फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र भी जारी करवा लिया गया।
जांच में सामने आया कि मृत्यु प्रमाण पत्र में जिन लोगों ने गलत जानकारी दी, उनके नाम भी दस्तावेजों में दर्ज हैं। पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कब्रिस्तान कमेटी के दो सदस्यों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है।
गौरतलब है कि अफजाल अली एक हत्या के मामले में दोषी ठहराया जा चुका है और वर्तमान में वह जमानत पर है। ऐसे में दस्तावेजों में उसे मृत घोषित करना एक संगठित साजिश की ओर इशारा करता है। पुलिस अब पूरे मामले की गहन जांच कर रही है, जिसमें और भी लोगों की संलिप्तता सामने आने की संभावना जताई जा रही है।
फर्जीवाड़े की कब्र से निकला सच: ‘मरे’ अफजाल अली निकला जिंदा, कब्रिस्तान कमेटी, नगर निगम और दस्तावेज़ों की मिलीभगत उजागर
हल्द्वानी (बनभूलपुरा): हत्या के दोषी अफजाल अली को कागजों में मृत दिखाकर उसे “दफ्न” करने का जो खेल खेला गया, वह अब धीरे-धीरे बेनकाब होता जा रहा है। जबकि अफजाल न केवल जिंदा है, बल्कि हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाने के बाद जमानत पर जेल से बाहर घूम रहा है।
मामले की गहराई में जाएं तो पता चलता है कि वर्ष 2013 में कब्रिस्तान कमेटी ने अफजाल को मृत बताकर उसकी “दफन” की रसीद जारी कर दी, जबकि वास्तविकता में ऐसा कोई दफन हुआ ही नहीं। इस रसीद के आधार पर 2014 में नगर निगम से मृत्यु प्रमाण पत्र भी बनवा लिया गया।
चौंकाने वाली बात यह है कि प्रमाण पत्र बनवाने के लिए फॉर्म में जिस व्यक्ति ने अफजाल की मौत की सूचना देने का दावा किया, वह भी कागजों में ही मौजूद है। फार्म में लिखा गया नाम — “मृतक का खलेला भाई अफजाल अली” — एक ऐसा व्यक्ति है जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है।
नगर निगम की शिकायत पर पुलिस ने कब्रिस्तान कमेटी के दो सदस्यों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। इनमें एक नाम इकबाल अंसारी का है, जो पहले कमेटी का सदर रह चुका है। अब उसकी जगह उसका बेटा तनवीर काम देखता है।
फर्जीवाड़े की परतें खुलती जा रही हैं। जांच में सामने आया कि अफजाल की मौत की तिथि 20 दिसंबर 2013 दर्शाई गई, जबकि मृत्यु प्रमाणपत्र 18 दिसंबर 2014 को यानी कथित मौत की बरसी से तीन दिन पहले जारी कर दिया गया। यदि फाइल 20 दिसंबर के बाद जाती, तो मामला एसडीएम कार्यालय में सत्यापन के लिए जाता। संभवतः इसी वजह से प्रमाण पत्र समय से पहले बनवा लिया गया।
प्रमाण पत्र में मौत का कारण “फेफड़ों की बीमारी” बताया गया, जबकि अफजाल पूरी तरह स्वस्थ है।
पुलिस अब इस पूरे प्रकरण में नगर निगम के रजिस्ट्रार, संबंधित कर्मचारी, और शपथपत्र बनाने वाले स्टांप विक्रेताओं तक की भूमिका की जांच कर रही है।
एसओ नीरज भाकुनी के मुताबिक यह सिर्फ अफजाल के फर्जी प्रमाण पत्र तक सीमित मामला नहीं है। शुरुआती जांच में यह सामने आया है कि तीन प्रमाणपत्र फर्जी तरीके से बनाए गए, जिनमें से दो मृतक हल्द्वानी में थे ही नहीं। आशंका है कि हल्द्वानी में वर्षों से सक्रिय फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने वाले गिरोह का यह हिस्सा है, जिसने इससे पहले भी कई बार ऐसे कागज बनवाए हैं।
अब पुलिस इस पूरे नेटवर्क की परतें खोलने में जुट गई है। हर अधिकारी, कर्मचारी और दस्तावेज़ से जुड़े व्यक्ति से पूछताछ की जाएगी। आने वाले दिनों में इस मामले में कई और बड़े नाम सामने आ सकते हैं।