पूर्व सेना प्रमुख नरवणे का बयान: ‘युद्ध कोई बॉलीवुड रोमांटिक फिल्म नहीं, आदेश मिला तो फिर से लड़ने को तैयार’
पुणे में इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के एक कार्यक्रम में पूर्व थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने सीजफायर को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि युद्ध कोई रोमांटिक कहानी या बॉलीवुड फिल्म नहीं होती, यह बेहद गंभीर और जिम्मेदारी भरा निर्णय होता है। जनरल नरवणे ने साफ कहा कि यदि देश की सेवा के लिए उन्हें दोबारा आदेश दिया जाए, तो वे युद्ध के लिए तैयार हैं। उनके इस बयान ने एक बार फिर सेना की प्रतिबद्धता और तैयारियों की झलक दी है।
पुणे में बोले पूर्व सेना प्रमुख नरवणे: “युद्ध कोई बॉलीवुड फिल्म नहीं, बातचीत ही होनी चाहिए पहली प्राथमिकता”
पीटीआई, पुणे – भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर के लागू होने के बीच सोशल मीडिया पर उठ रहे सवालों के बीच पूर्व थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने स्पष्ट और भावुक प्रतिक्रिया दी है। रविवार को पुणे में ‘इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया’ के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि युद्ध कोई फिल्मी तमाशा नहीं, बल्कि बेहद गंभीर और त्रासदी से भरा विषय होता है।
जनरल नरवणे ने कहा, “युद्ध कोई रोमांटिक या बॉलीवुड फिल्म नहीं है। यह एक दर्दनाक और गंभीर स्थिति होती है, जिसका असर दशकों तक महसूस किया जा सकता है। अगर आदेश दिया गया तो मैं युद्ध के लिए तैयार रहूंगा, लेकिन मेरी पहली पसंद हमेशा कूटनीति होगी।”
सीमावर्ती इलाकों की पीड़ा पर जताई चिंता
नरवणे ने सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों की स्थिति पर चिंता जताई और बताया कि वहां के बच्चों ने किस तरह गोलाबारी के साए में रातें बिताई हैं। उन्होंने कहा कि “जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है, उनके लिए यह दुख पीढ़ियों तक रहेगा। पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) जैसी समस्याएं इन अनुभवों से जुड़ी होती हैं, जिनका असर 20 साल बाद भी रह सकता है।”
युद्ध आखिरी विकल्प होना चाहिए
अपने संबोधन में नरवणे ने दोहराया कि युद्ध किसी भी मसले का हल नहीं है। “हिंसा कभी समाधान नहीं हो सकती। हमें हर परिस्थिति में पहले संवाद और कूटनीति के माध्यम से समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिए। देश की सुरक्षा सिर्फ सीमाओं पर नहीं, समाज के हर हिस्से में एकजुटता से सुनिश्चित होती है।”
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान का भी समर्थन किया जिसमें कहा गया था कि “यह युद्ध का युग नहीं है।” नरवणे ने कहा कि युद्ध तभी होता है जब कोई दूसरा देश हम पर आक्रमण करता है, लेकिन हमें कभी इसकी शुरुआत नहीं करनी चाहिए।
समाज में भी शांति और समझ जरूरी
जनरल नरवणे ने अपने भाषण के अंत में यह भी कहा कि सिर्फ देशों के बीच नहीं, बल्कि परिवारों, राज्यों और समुदायों के बीच भी संवाद और समझ की ज़रूरत है। “हम सभी राष्ट्रीय सुरक्षा के साझेदार हैं। हमें हर स्तर पर मतभेदों को बातचीत से सुलझाने की दिशा में काम करना चाहिए।”
पूर्व सेना प्रमुख का यह बयान ऐसे समय में आया है जब सीमाओं पर शांति बनाए रखने को लेकर चर्चाएं जारी हैं, और उनका यह संतुलित नजरिया एक बार फिर दर्शाता है कि सैन्य दृष्टिकोण में भी युद्ध को आखिरी विकल्प ही माना जाता है।