‘मेरे पास जीने की कोई तो वजह हो…’: पहलगाम हमले की पीड़िता ने पति के लिए शहीद का दर्जा मांगा
पहलगाम आतंकी हमले में नई शादीशुदा महिला का दुखद शोक, पति को शहीद का दर्जा देने की अपील
पहलगाम: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में कई महिलाओं की जीवन की खुशियाँ छिन गईं, और उनमें से एक हैं आशान्या द्विवेदी। यूपी के कानपुर की रहने वाली आशान्या ने कुछ महीने पहले ही अपने पति शुभम से शादी की थी और दोनों हनीमून के लिए पहलगाम गए थे। लेकिन उनकी खुशियाँ उस समय पल भर में उजड़ गईं, जब आतंकियों ने शुभम को अपना पहला शिकार बना लिया।
आतंकी हमले में अपने पति को खोने के बाद आशान्या बेहद टूट चुकी हैं, लेकिन अब वे अपने पति को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। उनका कहना है कि उनका पति देश के लिए शहीद हुआ है, और वह चाहती हैं कि उसकी बहादुरी को सम्मान मिले।
आशान्या की अपील ने कई लोगों को भावुक कर दिया है, और वे उम्मीद कर रही हैं कि सरकार उनके पति को शहीद का दर्जा देकर उनके बलिदान को सलाम करेगी।
पहलगाम आतंकी हमले में शहीद हुए शुभम द्विवेदी की पत्नी ने पति को ‘शहीद’ का दर्जा देने की अपील की
डिजिटल डेस्क, पीटीआई। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में 26 पर्यटकों की जान चली गई, जिनमें उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले शुभम द्विवेदी भी शामिल थे। नवविवाहित शुभम और उनकी पत्नी आशान्या छुट्टियां मनाने पहलगाम गए थे, लेकिन आतंकियों ने उन्हें निशाना बनाया। इस हमले में शुभम की मृत्यु हो गई, जबकि उनकी पत्नी आशान्या अब अपने पति को शहीद का दर्जा दिलाने की मांग कर रही हैं।
आशान्या ने बताया कि आतंकियों ने सबसे पहले शुभम पर गोली चलाई। उनकी बातचीत के दौरान, शुभम ने अपने धर्म को गर्व से बताया और इस दौरान कई अन्य पर्यटकों को भागने का मौका मिला, जिससे उनकी जान बच गई।
आशान्या ने मीडिया से कहा, “शुभम ने आतंकियों से बहस की, उन्होंने गर्व से कहा कि वह हिंदू हैं। आतंकियों ने उनकी बातों का विरोध किया और फिर पहली गोली उन्हीं पर चलाई। इस दौरान कुछ समय लगा, जिससे अन्य लोग मौके से भागने में सफल हो पाए।”
22 अप्रैल को बैसरन घाटी में हुए इस आतंकी हमले में शुभम द्विवेदी को गोली मारी गई थी। कानपुर के रहने वाले शुभम और आशान्या की शादी मात्र दो महीने पहले, 12 फरवरी को हुई थी। वे दोनों अपनी हनीमून के लिए जम्मू-कश्मीर पहुंचे थे, लेकिन इस हमले ने आशान्या का जीवन चिरकाल के लिए बदल दिया।
आशान्या ने हादसे को याद करते हुए बताया, “हम बैसरन घाटी में बैठकर मैगी खा रहे थे, तभी एक शख्स सेना की वर्दी में आया और हमसे पूछा कि हम हिन्दू हैं या मुस्लिम। हमें लगा वह मजाक कर रहा है, लेकिन जब मैंने कहा ‘हिंदू’, तो उसने शुभम के सिर में गोली मार दी। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि मुझे समझ में ही नहीं आया।”
आशान्या ने बताया कि पति की मौत के बाद उन्होंने आतंकियों से विनती की कि “अगर उन्होंने शुभम को मार दिया है तो मुझे भी मार डालें”, लेकिन आतंकियों ने उन्हें जिंदा छोड़ दिया। आतंकियों ने कहा, “तुम्हें जिंदा छोड़ रहे हैं ताकि तुम जाकर सरकार को बता सको कि हमने क्या किया है।”
शुभम के पिता संजय द्विवेदी ने भी इस हमले पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने बताया कि घटना के एक घंटे बाद सुरक्षाबल मौके पर पहुंचे, जबकि उस दौरान आतंकियों ने 26 लोगों की हत्या कर दी और भाग निकले।
आशान्या अब अपने पति को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए प्रशासन से अपील कर रही हैं, ताकि उनके पति के बलिदान को सम्मान मिल सके।