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“वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कपिल सिब्बल, सुनवाई को लेकर CJI ने दिया अहम बयान”

“वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कपिल सिब्बल, सुनवाई को लेकर CJI ने दिया अहम बयान”

वक्फ संशोधन कानून: कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की अपील की, CJI ने दिया आश्वासन

वक्फ संशोधन कानून को लेकर सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से शीघ्र सुनवाई की मांग की। इस पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि वह दोपहर में इन अनुरोधों पर विचार करेंगे। CJI ने कपिल सिब्बल और अन्य याचिकाकर्ताओं को आश्वासन देते हुए कहा कि वे इन याचिकाओं को सूचीबद्ध करने के संबंध में निर्णय लेंगे, साथ ही यह भी बताया कि पहले ही कई अन्य याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं।

कपिल सिब्बल ने वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट से शीघ्र सुनवाई की अपील की, CJI ने दिया आश्वासन

नई दिल्ली, पीटीआई। राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की मांग की है। इसके बाद, चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कपिल सिब्बल और अन्य याचिकाकर्ताओं को आश्वासन दिया कि वह याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर निर्णय लेंगे।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों पर विचार करते हुए कहा कि इन याचिकाओं को तत्काल सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि कई अन्य याचिकाएं पहले ही दायर की जा चुकी हैं।

CJI का बयान:

चीफ जस्टिस ने कहा, “मैं दोपहर में उल्लेख पत्र देखूंगा और इस पर निर्णय लूंगा। हम इसे सूचीबद्ध करेंगे।”

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने शनिवार को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दे दी, जिसे पहले संसद में गरमागरम बहस के बाद पारित किया गया था।

वक्फ (संशोधन) अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं, जिनमें समस्त केरल जमीयतुल उलेमा की याचिका भी शामिल है, पहले ही सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा चुकी हैं। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून देश के संविधान पर सीधे हमला है, जो न केवल नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है, बल्कि उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता भी देता है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद का आरोप है कि यह विधेयक मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने की एक खतरनाक साजिश है। इसलिए, उन्होंने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है और राज्य इकाइयों द्वारा अपने-अपने राज्यों के उच्च न्यायालयों में भी इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दिए जाने की बात कही है।

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