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“कॉमेडी का स्तर गिरा? अब निशाने पर कुणाल कामरा, क्या व्यंग्य के बुरे दिन आ गए?”

“कॉमेडी का स्तर गिरा? अब निशाने पर कुणाल कामरा, क्या व्यंग्य के बुरे दिन आ गए?”

क्या कॉमेडी का स्तर गिर रहा है? कुणाल कामरा के विवाद ने उठाए कई सवाल

क्रिएटिविटी की कोई सीमा नहीं होती, लेकिन कुछ लोग इस सीमा को लांघकर विवादों को जन्म दे देते हैं। हाल ही में कॉमेडियन कुणाल कामरा ने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर किए गए एक कटाक्ष के बाद चर्चा में आ गए हैं। शिंदे गुट के शिवसैनिकों ने मुंबई में उस स्टूडियो में तोड़-फोड़ की, जहां विवादित वीडियो की रिकॉर्डिंग की गई थी। हालांकि, कुणाल ने माफी मांगने से इंकार कर दिया और संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला दिया। वहीं, एकनाथ शिंदे ने इसे “क्रिया पर प्रतिक्रिया” कहकर अपने समर्थकों को समर्थन दिया है।

इस विवाद ने कई अहम सवाल खड़े किए हैं, खासकर यह कि क्या इन दिनों व्यंग्य और कॉमेडी का स्तर गिरता जा रहा है? हाल ही में रणवीर अलाहबादिया से जुड़े विवाद ने भी इसी प्रकार के सवाल उठाए थे। कई बार तो कॉमेडी में अश्लीलता और स्तरहीनता भी देखने को मिल चुकी है। वहीं, सवाल यह भी है कि क्यों सत्ताधारी व्यक्तियों पर ही कॉमेडियन का ध्यान केन्द्रित हो रहा है, जबकि व्यंग्य के लिए बहुत सारे विषय हो सकते हैं।

इतना ही नहीं, यह भी सवाल उठता है कि राजनीतिक व्यंग्य सत्ताधारियों को क्यों असहज कर देता है? क्या रचनात्मक आज़ादी का सम्मान नहीं किया जाता? आलोचना को स्वीकार करने की बजाय क्यों हमलावर प्रतिक्रिया दी जाती है? अगर ऐसा ही चलता रहा, तो क्या हम व्यंग्य की विधा को ही समाप्त कर देंगे? कुणाल कामरा जैसे कई कॉमेडियनों के इस मामले में नकारात्मक प्रतिक्रियाओं से यह सवाल और भी अहम हो जाता है।

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