भारत की बढ़ती साख से घबराए कुछ देश: डोनाल्ड ट्रंप पर मोहन भागवत का परोक्ष कटाक्ष
भारत की बढ़ती वैश्विक साख से कुछ देश डरे हुए: मोहन भागवत का अमेरिका और ट्रंप पर परोक्ष तंज
नागपुर, 12 सितंबर — राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ के बहाने अमेरिका और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर परोक्ष रूप से निशाना साधा है। नागपुर में ब्रह्मकुमारी संस्थान द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा से कुछ शक्तियां असहज हैं और भारत को रोकने के लिए आर्थिक दबाव जैसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
भागवत ने कहा, “भारत की साख जैसे-जैसे दुनिया में बढ़ रही है, कुछ लोग डर गए हैं। उन्हें लगता है कि भारत अगर आगे बढ़ गया तो उनका क्या होगा? इसलिए भारत पर टैरिफ लगाकर उसे दबाने की कोशिश की जा रही है।”
अपने संबोधन में उन्होंने ‘मैं’ और ‘मेरा’ की संकीर्ण सोच को दुनिया के संघर्षों की जड़ बताते हुए कहा कि जब तक व्यक्ति स्वयं तक सीमित रहेगा, तब तक संघर्ष बना रहेगा। उन्होंने कहा, “दुनिया ने अपने अधूरे दृष्टिकोण से समाधान ढूंढ़ने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई, क्योंकि वे केवल अपने स्वार्थ (‘मैं’) तक सीमित रह गए हैं।”
अपने वक्तव्य में भागवत ने एक प्रतीकात्मक कथा के माध्यम से अहिंसा, सह-अस्तित्व और आत्मबोध का संदेश भी दिया। उन्होंने कहा, “एक विषैला साँप तथागत (बुद्ध) के चरणों में सिर रख देता है, यह दर्शाता है कि हर संकट या विष केवल प्रतिक्रिया पर आधारित होता है। अगर हम दूसरों के क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करें, तो टकराव नहीं होता।”
मोहन भागवत ने यह भी कहा कि संघ में उनकी भूमिका स्थायी नहीं, बल्कि परिस्थितियों की उपज है। “आज आप मेरे बारे में अच्छी बातें कह रहे हैं क्योंकि मैं सरसंघचालक हूँ। अगर कोई और होता, तो आप उसी के बारे में ऐसा सोचते। यह स्थिति पर निर्भर करता है, और यह बदलता रहता है।”
कार्यक्रम में उन्होंने भारत की वैश्विक भूमिका पर भी विचार रखे। उन्होंने कहा, “भारत बड़ा बनना चाहता है, लेकिन दूसरों को दबाकर नहीं, बल्कि दुनिया को राहत और समाधान देकर। जहां अन्य देश खुद को ऊपर उठाने के लिए दूसरों को गिराते हैं, भारत सहयोग और शांति से महान बनने की राह पर है।”
मोहन भागवत के ये विचार ऐसे समय में आए हैं जब वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका और प्रभाव लगातार बढ़ रहा है, और कई पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक और रणनीतिक संबंधों को लेकर चर्चाएं तेज़ हैं। उनके बयानों को भारत की उभरती भूमिका पर संघ के दृष्टिकोण के रूप में देखा जा रहा है।