भंडारा: आजादी के 7 दशक बाद गांव में पहुंची लालपरी, ग्रामीणों ने किया भव्य स्वागत
भंडारा के फनोली गांव में पहली बार पहुंची ‘लालपरी’, ग्रामीणों की आंखें नम, दिलों में खुशी की लहर
भंडारा, 24 जुलाई — आज़ादी के 75 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार भंडारा जिले के पवनी तालुका स्थित फनोली गांव में पहली बार महाराष्ट्र राज्य परिवहन की बस—लालपरी—ने प्रवेश किया। यह सिर्फ एक बस सेवा की शुरुआत नहीं, बल्कि दशकों की उपेक्षा के बाद एक नए युग की शुरुआत है, जिसे लेकर पूरे गांव में उत्साह और भावुकता का अनोखा माहौल देखने को मिला।
गांव में जैसे ही पहली लालपरी दाखिल हुई, ढोल-ताशों की गूंज सुनाई दी, ग्रामीणों ने फूलों की वर्षा की, नारियल फोड़े और बस चालक के साथ परिवहन अधिकारियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। यह दृश्य उस गांव के लिए ऐतिहासिक बन गया, जहां अब तक बच्चे स्कूल जाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलते थे और बीमारों को इलाज के लिए भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था।
वर्षों की मांग और संघर्ष के बाद मिली राहत
फनोली गांव के निवासियों ने लंबे समय से बस सेवा की मांग की थी। गांव के युवा, महिलाओं और किसानों ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से लगातार संपर्क किया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। जब देश ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा था, उस समय भी यह गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित था। लेकिन स्थानीय युवाओं ने हार नहीं मानी। सोशल मीडिया, जन सुनवाई और आंदोलन के माध्यम से उन्होंने अपनी आवाज़ को मजबूती से उठाया, जिसका नतीजा अब गांव को मिला है।
सिर्फ बस नहीं, विकास की शुरुआत
गांव के सरपंच ने कहा, “यह केवल एक बस सेवा नहीं है, यह हमारे लिए विकास का पहला संकेत है। अब हम भंडारा, पवनी और नागपुर जैसे शहरों से सीधे जुड़ गए हैं। बच्चों की पढ़ाई, महिलाओं की आवाजाही और किसानों के लिए बाजार तक पहुंच अब आसान होगी।”
गांव के बुजुर्गों और महिलाओं की आंखों में खुशी के आँसू थे। एक ग्रामीण महिला ने कहा, “पहले हमें अस्पताल जाने के लिए खेतों और जंगलों से होकर गुजरना पड़ता था। अब समय पर इलाज मिल सकेगा।”
शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार को मिलेगा बढ़ावा
नई बस सेवा से गांव के छात्रों को शिक्षा के बेहतर अवसर मिलेंगे। साथ ही, अब ग्रामीण अपने उत्पादों को बाजार तक आसानी से पहुंचा पाएंगे, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी।
फनोली गांव में लालपरी की यह पहली आवाजाही सिर्फ परिवहन नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की शुरुआत है—एक ऐसा बदलाव, जिसकी बुनियाद वर्षों के संघर्ष और उम्मीदों पर टिकी है।