‘सरकार को भिखारी’ कहने पर घिरे कृषि मंत्री कोकाटे, विपक्ष ही नहीं सत्तापक्ष के नेताओं ने भी की निंदा, माफी की मांग तेज
‘सरकार को भिखारी’ कहने पर कृषि मंत्री कोकाटे विवादों में, विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों नाराज़, माफी और बर्खास्तगी की उठी मांग
नागपुर, 23 जुलाई 2025:
राज्य के कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे अपने विवादित बयान को लेकर राजनीतिक घमासान में फंसते जा रहे हैं। ‘सरकार खुद भिखारी है’ जैसी टिप्पणी ने न सिर्फ विपक्ष को हमला बोलने का मौका दिया है, बल्कि सत्ता पक्ष के नेता भी अब मंत्री के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे हैं।
शिवसेना नेता नरेंद्र भोंडेकर ने कोकाटे से सार्वजनिक माफी की मांग की है, वहीं कांग्रेस विधायक विजय वडेट्टीवार ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से कोकाटे को मंत्रिमंडल से हटाने की अपील की है।
कोकाटे का विवादित बयान क्या था?
एक कार्यक्रम में बोलते हुए कोकाटे ने कहा था, “यहां तक कि भिखारी भी भीख में एक रुपये नहीं लेता, लेकिन सरकार फसल बीमा योजना के तहत किसानों से एक रुपये ले रही है। फिर भी कुछ लोग इसका दुरुपयोग करते हैं।” इसके बाद जब पत्रकारों ने उनसे सवाल किया, तो उन्होंने कहा, “सरकार किसानों को पैसा नहीं देती, उनसे एक रुपया लेती है… सरकार खुद भिखारी है।”
राजनीतिक गलियारों में नाराजगी
शिवसेना नेता नरेंद्र भोंडेकर ने नागपुर में प्रेस को संबोधित करते हुए कहा, “कृषि मंत्री का यह बयान बेहद आपत्तिजनक है। उन्हें न सिर्फ किसानों से, बल्कि पूरे राज्य से माफी मांगनी चाहिए।” उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को इस मामले में तत्काल संज्ञान लेना चाहिए।
वहीं कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने इस बयान को किसान विरोधी बताते हुए कहा कि, “ऐसे मंत्री को पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। मुख्यमंत्री को उन्हें तुरंत बर्खास्त करना चाहिए।”
मुख्यमंत्री ने भी जताई नाराजगी
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी कोकाटे के बयान को अनुचित बताया। गढ़चिरौली में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, “अगर मंत्री ने ऐसा कहा है तो यह शोभा नहीं देता। मंत्री पद की गरिमा बनाए रखना जरूरी है।” उन्होंने यह भी दोहराया कि सरकार ने फसल बीमा योजना में सुधार इसलिए किए हैं ताकि किसानों को अधिक लाभ मिले, बीमा कंपनियों को नहीं।
इस विवाद ने राज्य की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है कि क्या मंत्रियों को अपनी भाषा और बयानों में अधिक जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए, खासकर जब बात किसानों जैसे संवेदनशील वर्ग की हो।