मंत्री के भाई की दखलअंदाजी से चंद्रपुर थर्मल पावर स्टेशन के ठेकेदारों में नाराजगी
चंद्रपुर थर्मल पावर स्टेशन में ठेकों पर ‘राजनीतिक दबाव’, मंत्री के भाई की दखलअंदाजी से ठेकेदारों में असंतोष
चंद्रपुर, 1 जुलाई – महाराष्ट्र के सबसे बड़े बिजली उत्पादन केंद्र, चंद्रपुर थर्मल पावर स्टेशन (सीटीपीएस) में ठेकेदारी व्यवस्था को लेकर भारी विवाद खड़ा हो गया है। स्थानीय ठेकेदारों ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार के एक प्रभावशाली मंत्री के भाई द्वारा ठेके हासिल करने के लिए लगातार दबाव डाला जा रहा है, जिससे पारदर्शी प्रक्रिया को दरकिनार कर एकतरफा हस्तक्षेप किया जा रहा है।
ठेकेदारों का दावा है कि मंत्री के भाई की दखल ने कामकाज की पारदर्शिता को खत्म कर दिया है। पहले जहां निविदा प्रक्रिया खुली और निष्पक्ष होती थी, वहीं अब ठेके ईमेल या डाक के जरिए सीमित लोगों को दिए जा रहे हैं। छोटे ठेकेदारों को तो मुख्य अभियंता कार्यालय में प्रवेश करने से भी रोका जा रहा है।
“हर ठेका मुझे ही चाहिए” – मंत्री के भाई का रवैया
स्थानीय ठेकेदारों का कहना है कि मंत्री के भाई खुलेआम अधिकारियों को निर्देश देते हैं कि किसे काम देना है, और खुद ही कुछ ठेकेदारों के नाम पर काम भी लेते हैं। यह दखल इस कदर बढ़ गया है कि अधिकारी उनकी बात को ही अंतिम आदेश मानने लगे हैं। एक ठेकेदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अब ऑफिस में किसी भी तरह की ठेके से जुड़ी जानकारी लेने तक की अनुमति नहीं है।
सीटीपीएस पर ‘परली पावर स्टेशन’ जैसे हालात का खतरा
चंद्रपुर के 2920 मेगावॉट क्षमता वाले थर्मल पावर स्टेशन में लंबे समय से काम कर रहे ठेकेदारों को डर है कि अगर यही हालात रहे तो यह प्रतिष्ठित स्टेशन भी परली थर्मल स्टेशन की तरह प्रशासनिक विफलताओं का शिकार बन सकता है।
राजनीतिक दखल ने बढ़ाया संकट
यह मामला अब सिर्फ प्रशासनिक नहीं रहा, बल्कि यह सत्ता के प्रभाव और संस्थागत व्यवस्था में गिरावट का प्रतीक बनता जा रहा है। जहां एक ओर वर्षों से काम कर रहे अनुभवी ठेकेदारों को हाशिए पर डाला जा रहा है, वहीं सत्ता से जुड़े व्यक्ति के लिए नियम और प्रक्रियाएं गौण हो गई हैं।
क्या खतरे में है चंद्रपुर की साख?
यदि जल्द ही इस हस्तक्षेप पर लगाम नहीं लगाई गई, तो न केवल सीटीपीएस की कार्यप्रणाली प्रभावित होगी, बल्कि चंद्रपुर की ऊर्जा उत्पादन में अहम भूमिका निभाने वाली यह इकाई भी बदनामी की कगार पर पहुंच सकती है। स्थानीय ठेकेदारों ने सरकार से पारदर्शिता बहाल करने और राजनीतिक हस्तक्षेप पर रोक लगाने की मांग की है।
इस पूरे मामले ने प्रशासन, राजनीति और पारदर्शिता के बीच टकराव को उजागर कर दिया है – जहां सत्ता का प्रभाव व्यावसायिक अवसरों और निष्पक्षता पर हावी होता दिख रहा है।