मोहन भागवत: “मंदिर से लेकर श्मशान तक सभी को समान अधिकार मिलना चाहिए”
जातिगत भेदभाव छोड़ समरस समाज की ओर बढ़ने का आह्वान: मोहन भागवत
नागपुर, 9 जून — राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को नागपुर में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए सामाजिक समरसता और समावेशी राष्ट्र निर्माण की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के माध्यम से परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी का भाव जागृत करना है।
भागवत ने स्वयंसेवकों से संवाद के दौरान जातिगत भेदभाव को समाज के लिए बाधक बताते हुए कहा, “हमें एक ऐसे समाज की ओर बढ़ना चाहिए जो जातिगत असमानता से मुक्त हो और सार्वजनिक संसाधनों — मंदिर, जलाशय और श्मशान — तक सभी की समान पहुंच सुनिश्चित करे। यही सच्ची सामाजिक समरसता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि संघ केवल शाखाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के हर क्षेत्र में सेवा और सकारात्मक बदलाव के लिए कार्य कर रहा है। “हम ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना के साथ चलते हैं और इसी भावना के अनुरूप संघ ने समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भूमिका निभाई है,” उन्होंने कहा।
संघ प्रमुख ने बताया कि वर्तमान में आरएसएस अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुका है और ‘पंच परिवर्तन’ के सिद्धांत पर काम करते हुए समाज को जागरूक, जिम्मेदार और संवेदनशील बनाने के प्रयास कर रहा है।
उन्होंने स्वयंसेवकों से यह भी आग्रह किया कि जिन क्षेत्रों में शाखाएं संचालित होती हैं, वहां हर परिवार से संघ का संपर्क होना चाहिए ताकि संगठन का उद्देश्य और सेवा कार्यों की जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सके।