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क्या ‘एक देश-एक चुनाव’ में अपनाया जाएगा जर्मनी और जापान का मॉडल? संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष ने बताया भविष्य का खाका

क्या ‘एक देश-एक चुनाव’ में अपनाया जाएगा जर्मनी और जापान का मॉडल? संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष ने बताया भविष्य का खाका!

‘एक देश-एक चुनाव’ विधेयक को लेकर केंद्र सरकार जर्मनी और जापान के संसदीय मॉडल पर गंभीरता से विचार कर रही है, खासकर तब की स्थिति में जब सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए या उसे बहुमत न मिले। इसके साथ ही उत्तराखंड जैसे राज्यों में पर्यटन और प्रवासी मजदूरों पर चुनावों के प्रभाव का भी विश्लेषण किया जा रहा है।

संयुक्त संसदीय समिति का उद्देश्य है कि समाज के सभी वर्गों से संवाद कर इस पहल का एक समावेशी समाधान निकाला जाए। इसका मुख्य मकसद मतदान प्रतिशत को बढ़ाना और चुनावी प्रक्रिया को अधिक प्रभावी एवं पारदर्शी बनाना है।

‘एक देश-एक चुनाव’ पर तैयार हो रहा नया रोडमैप, जर्मनी-जापान मॉडल पर विचार; पर्यटन, मजदूर और शिक्षा पर असर भी अध्ययन में शामिल

देहरादून। ‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर केंद्र सरकार गंभीर मंथन कर रही है। इसके लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने बताया कि विधेयक में केवल सभी चुनाव एक साथ कराने की बात नहीं है, बल्कि उन परिस्थितियों पर भी विचार हो रहा है, जब कोई सरकार कार्यकाल पूरा होने से पहले गिर जाए या उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ जाए।

जर्मनी-जापान मॉडल से मिल सकती है राह

चौधरी ने कहा कि यदि किसी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है, तो इस स्थिति से निपटने के लिए जर्मनी और जापान जैसे देशों की तर्ज पर ‘रचनात्मक अविश्वास प्रस्ताव’ (constructive vote of no confidence) जैसे प्रावधानों पर मंथन चल रहा है। इसके तहत, अविश्वास जताने वाले दल को यह भी बताना होगा कि वे किस नेता को सरकार चलाने के लिए प्रस्तावित कर रहे हैं।

इसके अतिरिक्त, यदि कोई सरकार कार्यकाल के बीच में गिरती है, तो नई सरकार को केवल शेष बचे कार्यकाल तक ही सत्ता में रहने की व्यवस्था पर भी विचार किया जा रहा है, ताकि भविष्य में चुनावों का चक्र एकसमान बना रहे।

उत्तराखंड जैसे राज्यों में पर्यटन और शिक्षा पर असर

समिति की ओर से उत्तराखंड जैसे विशेष परिस्थितियों वाले राज्यों की स्थिति पर भी मंथन हो रहा है। चौधरी ने कहा कि मार्च से मई तक राज्य में पर्यटन का पीक सीजन होता है। इस दौरान चुनाव कराए जाने पर पर्यटन व्यवसाय पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है, क्योंकि प्रशासनिक मशीनरी चुनावों में व्यस्त हो जाती है।

इसके अलावा, बार-बार चुनावों के चलते शिक्षकों की ड्यूटी, स्कूलों में पोलिंग बूथ, और पठन-पाठन की बाधा जैसी समस्याओं की भी पहचान की गई है।

प्रवासी मजदूरों पर असर और मतदान प्रतिशत में गिरावट

देशभर में करीब 4.85 करोड़ प्रवासी मजदूर हैं जो अलग-अलग राज्यों में काम करते हैं। बार-बार चुनावों के चलते इन्हें अपने गृह राज्य लौटना पड़ता है, जिससे उद्योगों की कार्यकुशलता पर असर पड़ता है। साथ ही, बार-बार मतदान से मतदान प्रतिशत भी प्रभावित होता है। समिति का मानना है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से मतदान में बढ़ोतरी हो सकती है।

सभी वर्गों से संवाद कर रहे हैं सदस्य

पीपी चौधरी ने स्पष्ट किया कि समिति राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर कार्य कर रही है और इसमें हर दल के सदस्य लोकतांत्रिक और संसदीय परंपराओं का पालन करते हुए जनहित में सुझाव जुटा रहे हैं। समिति का लक्ष्य एक ऐसा समाधान निकालना है जो देश में स्थायित्व, पारदर्शिता और सुगमता सुनिश्चित कर सके।

निष्कर्ष

‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर सरकार एक व्यापक और व्यावहारिक दृष्टिकोण पर काम कर रही है, जिसमें न केवल संवैधानिक चुनौतियां, बल्कि सामाजिक, शैक्षिक, औद्योगिक और पर्यावरणीय प्रभावों को भी ध्यान में रखा जा रहा है। आने वाले समय में यह विधेयक देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बड़ा बदलाव ला सकता है।

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