बीटेक छात्र से बना खूंखार नक्सली: 150 जवानों की हत्या का दोषी बसवराजु मुठभेड़ में ढेर
नक्सलवाद की ‘रीढ़’ टूटी: बीटेक से बना आतंकी मास्टरमाइंड बसवराजु ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट में ढेर
गड़चिरोली/नारायणपुर: एक ज़माने में इंजीनियर बनने का सपना देखने वाला युवक, जो बाद में देश के सबसे खूंखार नक्सलियों में गिना जाने लगा—नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजु—अब इतिहास बन चुका है। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले के घने जंगलों में 21 मई को हुए ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट में सुरक्षाबलों ने इस मोस्ट वॉन्टेड नक्सली को मार गिराया। बसवराजु की मौत को सुरक्षा एजेंसियां नक्सलवाद के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी जीत मान रही हैं।
कलम से लेकर बंदूक तक का सफर
आंध्र प्रदेश के वारंगल ज़िले में जन्मा बसवराजु पढ़ाई में होनहार था। उसने इंजीनियरिंग की डिग्री एक प्रतिष्ठित संस्थान से हासिल की थी। लेकिन कॉलेज के दिनों में उसका संपर्क वामपंथी छात्र संगठनों से हुआ और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ उसका आक्रोश माओवादी विचारधारा में बदल गया। कलम छोड़ कर AK-47 थामने वाले इस युवक ने 1980 के दशक में पीपुल्स वार ग्रुप (PWG) से जुड़ कर हिंसक विद्रोह की राह पकड़ ली।
रणनीतिकार से जनसंहारक बनने तक
केशव राव ने जंगलों में गुरिल्ला युद्ध की बारीकियां सीखीं और धीरे-धीरे CPI (माओवादी) के महासचिव और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रमुख तक पहुंच गया। उसके नेतृत्व में नक्सलियों ने कई बड़े हमले किए:
- 2010 दंतेवाड़ा हमला: 76 CRPF जवान शहीद
- 2013 झीरम घाटी नरसंहार: कांग्रेस नेताओं समेत 29 लोगों की हत्या
- गड़चिरोली, सुकमा, बीजापुर जैसे जिलों में कई घातक हमले
केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने उस पर कुल ₹1.5 करोड़ का इनाम घोषित कर रखा था।
ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट: अंत का आगाज़
मई 2025 में स्पेशल इंटेलिजेंस ब्रांच (SIB) को पुख्ता जानकारी मिली कि बसवराजु नारायणपुर के अबूझमाड़ जंगल में मौजूद है। इसके बाद CRPF, DRG, कोबरा कमांडो और छत्तीसगढ़ पुलिस ने संयुक्त अभियान चलाया। आठ घंटे चली मुठभेड़ में 27 नक्सली मारे गए, जिनमें बसवराजु की पहचान बाद में हुई।
भविष्य की तस्वीर: माओवाद के लिए बड़ा झटका
विशेषज्ञों का कहना है कि बसवराजु की मौत ने नक्सल आंदोलन की कमर तोड़ दी है। उसका सैन्य कौशल, नेटवर्क और नेतृत्व क्षमता उसकी पहचान थी—जिसकी जगह भर पाना माओवादियों के लिए बेहद कठिन होगा। सरकार के “नक्सल मुक्त भारत” अभियान के लिए यह एक निर्णायक मोड़ माना जा रहा है।
अब सवाल यही है: क्या इस मौत के साथ ही लाल गलियारे का खात्मा करीब आ चुका है? जवाब आने वाले महीनों में मिलेगा, लेकिन फिलहाल, यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के इतिहास में एक बड़ी कामयाबी के तौर पर दर्ज हो चुका है।