“सिर्फ अपमान और बेइज्जती मिली…” — जब राज ठाकरे ने छोड़ी थी शिवसेना, ठाकरे भाइयों में क्यों आई थी दरार? जानिए पूरा मामला
राज ठाकरे ने दिखाए सुलह के संकेत, उद्धव ठाकरे बोले– छोटे मतभेद भुलाने को तैयार हूं; शिवसेना से अलगाव की यादें फिर हुईं ताज़ा
मुंबई।
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर ‘ठाकरे बनाम ठाकरे’ की कड़वाहट कम होती दिख रही है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने हाल ही में अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे के साथ पुराने मतभेद भुलाकर आगे बढ़ने के संकेत दिए हैं। इस पर उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि “मैं छोटे-मोटे विवादों को अलग रखने के लिए तैयार हूं।”
दोनों नेताओं के बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में नए समीकरणों को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। यह पहली बार नहीं है जब दोनों भाइयों के रिश्तों को लेकर चर्चा हो रही हो, लेकिन इस बार लहजा बदला हुआ नजर आ रहा है।
2005 में हुआ था शिवसेना से राज ठाकरे का अलगाव
गौरतलब है कि दिसंबर 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना से नाता तोड़ते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की नींव रखी थी। इस फैसले से शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे बेहद आहत हुए थे। तब राज ठाकरे ने आरोप लगाया था कि उन्हें पार्टी में लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है और सिर्फ अपमान सहना पड़ा।
वर्षों तक चले राजनीतिक और पारिवारिक तनाव के बाद अब दोनों नेताओं के सुरों में नरमी आना इस ओर इशारा करता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई शुरुआत की संभावना बन सकती है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि राज और उद्धव के रिश्तों में यह मेल भावनात्मक बयानबाज़ी तक सीमित रहता है या आने वाले समय में कोई बड़ा राजनीतिक गठबंधन इसका नतीजा बनता है।
ठाकरे परिवार में दो दशक बाद सुलह के संकेत, जानिए क्यों टूटा था शिवसेना में भाईचारे का बंधन
नई दिल्ली।
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से नया मोड़ आता दिख रहा है। एक दौर में एक-दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंदी माने जाने वाले राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अब रिश्तों की दरार को भरने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। दो दशक पहले जिस मतभेद ने ठाकरे परिवार को दो हिस्सों में बांट दिया था, अब शायद उसके पटरी पर लौटने का वक्त आ गया है।
राज ठाकरे ने हाल ही में अपने भाई उद्धव ठाकरे के साथ पुराने मतभेदों को पीछे छोड़ने के संकेत दिए हैं। इस पर उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और कहा कि वह “छोटे-मोटे विवादों को भुलाकर आगे बढ़ने को तैयार हैं”।
दो घटनाएं, एक शिवसेना और दो टुकड़े
जब कभी शिवसेना के इतिहास की बात होगी, तो दो बड़े राजनीतिक भूचालों को जरूर याद किया जाएगा।
पहला — राज ठाकरे द्वारा 2005 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की स्थापना।
दूसरा — 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत, जिसने शिवसेना को दो फाड़ कर दिया।
लेकिन राज और उद्धव की तकरार शिवसेना के पहले बिखराव की कहानी है, जिसकी जड़ें भावनाओं और सत्ता-संतुलन में गहरे दबी हुई हैं।
बाल ठाकरे के भरोसेमंद थे राज ठाकरे
90 के दशक में जब शिवसेना का दबदबा चरम पर था, राज ठाकरे को बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी माना जाता था। उनके भाषण, शैली और रणनीति में बाल ठाकरे की झलक नजर आती थी। लेकिन जैसे ही उद्धव ठाकरे की सक्रियता पार्टी में बढ़ी, राज धीरे-धीरे हाशिए पर धकेले जाने लगे। पार्टी की ज़िम्मेदारियां एक-एक करके उद्धव को सौंपी जाने लगीं। एक चुनाव में उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना को बड़ी सफलता मिली, जिससे उनके नेतृत्व को और बल मिला।
18 दिसंबर 2005: जब सबकुछ बदल गया
मुंबई के शिवाजी पार्क जिमखाना में मीडिया का जमावड़ा लगा था। सबको अंदेशा था कि राज ठाकरे कोई बड़ा ऐलान करने वाले हैं। और हुआ भी वही। मंच पर आते ही उन्होंने कहा –
“मैंने सम्मान मांगा, बदले में अपमान और बेइज्जती मिली। मैं आज जैसा दिन अपने सबसे बड़े दुश्मन के लिए भी नहीं चाहूंगा।”
इसके साथ ही उन्होंने शिवसेना से अलग होने की घोषणा कर दी। और कुछ ही महीनों में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) का गठन कर लिया।
बाल ठाकरे का टूटा दिल, उद्धव की प्रतिक्रिया
राज के फैसले से बाल ठाकरे बेहद आहत हुए थे। उद्धव ठाकरे ने भी उस वक्त इसे “गलतफहमी का नतीजा” बताया था और कहा था कि बातचीत से मतभेद सुलझ सकते थे, लेकिन राज टस से मस नहीं हुए।
क्या फिर साथ आएंगे ठाकरे बंधु?
अब जब दोनों ओर से नरमी के संकेत मिल रहे हैं, तो महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई साझेदारी की उम्मीद बंधती दिख रही है। हालांकि, यह सिर्फ व्यक्तिगत रिश्तों की मरम्मत होगी या कोई राजनीतिक गठबंधन भी आकार लेगा, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
एक बात तय है कि अगर राज और उद्धव एक मंच पर आए, तो यह सिर्फ ठाकरे परिवार ही नहीं, महाराष्ट्र की राजनीति में भी एक बड़ा बदलाव होगा।