महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर सियासी घमासान, CM के समर्थन पर विपक्ष ने मराठी अस्मिता पर बताया हमला
महाराष्ट्र में हिंदी पर घमासान: नई शिक्षा नीति के फैसले से शुरू हुई सियासी जंग, मराठी अस्मिता पर उठा सवाल
मुंबई: तमिलनाडु के बाद अब महाराष्ट्र में भी हिंदी भाषा को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। राज्य सरकार ने ‘राज्य स्कूल पाठ्यक्रम रूपरेखा 2024’ के तहत मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाने का फैसला लिया है। यह नियम जून से शुरू होने वाले नए शैक्षणिक सत्र से लागू किया जाएगा।
सरकार के इस फैसले को लेकर राज्य की राजनीति गरमा गई है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस निर्णय का समर्थन करते हुए कहा है कि हिंदी देश में संवाद की एक प्रमुख भाषा है और इसका ज्ञान बच्चों के लिए उपयोगी होगा। फडणवीस ने कहा, “महाराष्ट्र में मराठी का महत्व सर्वोपरि है, लेकिन हिंदी सीखना संवाद के लिहाज से जरूरी है।”
हालांकि, विपक्षी दल इस निर्णय को मराठी अस्मिता के खिलाफ बता रहे हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने इस कदम को ‘हिंदीकरण’ की साजिश करार दिया। उन्होंने तीखा बयान देते हुए कहा, “हम हिन्दू हैं, लेकिन हिंदी नहीं! महाराष्ट्र पर हिंदी थोपने की कोशिश की गई तो संघर्ष होगा।”
राज ठाकरे ने त्रिभाषा फार्मूला को शिक्षा क्षेत्र में लागू करने का विरोध करते हुए सरकार पर आरोप लगाया कि वह मराठी और गैर-मराठी के बीच तनाव पैदा कर आगामी चुनावों में राजनीतिक लाभ लेना चाहती है।
कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने भी इस फैसले की आलोचना की। उन्होंने इसे मराठी अस्मिता पर सीधा हमला बताते हुए कहा कि यह निर्णय राज्य की भाषाई पहचान के खिलाफ है। उन्होंने केंद्र सरकार पर भी आरोप लगाया कि वह संघीय ढांचे की भावना को दरकिनार कर हिंदी को जबरन थोपने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस ने तीसरी भाषा को वैकल्पिक रखने की मांग की है।
इस पूरे विवाद ने राज्य में एक नई सियासी बहस को जन्म दे दिया है—क्या हिंदी को शिक्षा व्यवस्था में अनिवार्य बनाना सही है? तमिलनाडु की तर्ज पर महाराष्ट्र में भी यह मुद्दा व्यापक आंदोलन का रूप ले सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाषा को लेकर यह टकराव आगे क्या मोड़ लेता है।