Waqf Amendment Bill: 1500 साल पहले शिवजी को दान की गई तिरुचेंथुरई गांव की जमीन, कैसे बनी वक्फ विवाद का हिस्सा?
वक्फ संशोधन बिल: 1500 साल पुरानी तिरुचेंथुरई गांव की जमीन को लेकर नया विवाद, शिव मंदिर से जुड़ी है ऐतिहासिक कहानी
तमिलनाडु के तिरुचेंथुरई गांव को लेकर वक्फ संशोधन बिल पर एक नया विवाद सामने आया है। यह विवाद विशेष रूप से उस भूमि से जुड़ा है, जो 1500 साल पहले चोल शासकों द्वारा शिवजी के आशीर्वाद से मंदिर निर्माण के लिए समर्पित की गई थी। कहा जाता है कि चोल साम्राज्य के शासकों ने कावेरी नदी के किनारे स्थित इस पवित्र स्थान को शिवजी को समर्पित किया और उनके नाम पर जमीन दान की थी।
तिरुचेंथुरई का धार्मिक और पौराणिक महत्व गहरा है, क्योंकि यह कावेरी नदी और चंद्रशेखर स्वामी मंदिर से जुड़ा हुआ है, जिसे हिंदू पौराणिक कथाओं में अत्यधिक सम्मानित माना जाता है। कावेरी नदी की उत्पत्ति ऋषि अगस्त्य के कमंडल से मानी जाती है, और यह नदी पवित्रता की प्रतीक मानी जाती है।
इस समय, तिरुचेंथुरई गांव का नाम वक्फ संशोधन बिल के संदर्भ में चर्चा में है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को संसद में इस बिल को पेश करते हुए तिरुचेंथुरई गांव का उल्लेख किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि त्रिची के इस गांव में कई एकड़ भूमि को वक्फ बोर्ड की संपत्ति के रूप में घोषित किया गया है।
विपक्षी दलों द्वारा इस बिल के विरोध के बावजूद, एनडीए सरकार ने इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने का निर्णय लिया। इस बीच, इस मामले में अब तिरुचेंथुरई गांव की जमीन को लेकर राजनीतिक और कानूनी विवाद गहरा रहा है, क्योंकि यह भूमि ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है।
तिरुचेंथुरई का 2000 साल पुराना इतिहास: वक्फ विवाद के पीछे छिपे ऐतिहासिक और धार्मिक पहलू
तमिलनाडु के त्रिची जिले का तिरुचेंथुरई गांव वक्फ संशोधन बिल के कारण चर्चा में है, और इस विवाद का आधार गांव का प्राचीन इतिहास है। यदि हम 1500 साल पीछे जाएं, तो तिरुचेंथुरई में बसी कावेरी नदी के तटीय डेल्टा क्षेत्र की यह भूमि करीब 2000 साल का लेखित इतिहास समेटे हुए है। यहां स्थित चंद्रशेखर स्वामी मंदिर लगभग 1500 साल पुराना है और इसे चोल साम्राज्य के दौरान शिवजी को समर्पित किया गया था।
कहा जाता है कि चोल शासकों ने दक्षिण भारत में अपनी विजय के बाद महादेव शिव के आशीर्वाद से इस भूमि को समर्पित किया और इस मंदिर का निर्माण कराया। तिरुचेंथुरई का पौराणिक महत्व विशेष रूप से कावेरी नदी और इसके किनारे स्थित इस मंदिर से जुड़ा है। कावेरी को हिंदू पौराणिक कथाओं में पवित्र नदी माना जाता है, जिसकी उत्पत्ति ऋषि अगस्त्य के कमंडल से मानी जाती है।
चंद्रशेखर स्वामी मंदिर और शिव से जुड़ी मान्यताएं
चंद्रशेखर स्वामी मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित है, गांव का प्रमुख धार्मिक स्थल है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह शिवलिंग स्वयंभू (प्राकृतिक रूप से उत्पन्न) है, और एक लोक कथा के अनुसार, एक ग्वाले को इस स्थल पर एक चमकदार पत्थर मिला था, जिसके बाद उसने स्वप्न में भगवान शिव से मंदिर बनाने का निर्देश प्राप्त किया।
चोल साम्राज्य और तिरुचेंथुरई
चोल साम्राज्य (9वीं-13वीं शताब्दी) ने तिरुचेंथुरई को अपनी साम्राज्य की अहम भूमि बना लिया था। यह स्थल कावेरी नदी के उत्तरी तट पर स्थित था और शैव धर्म के अनुयायी चोल शासकों ने यहां कई शिव मंदिरों का निर्माण कराया। चंद्रशेखर स्वामी मंदिर के शिलालेखों से भी पता चलता है कि चोलों ने इस मंदिर को भूमि और धन दान किया था।
ब्रिटिश काल और आजादी के बाद का इतिहास
18वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन के दौरान, तिरुचेंथुरई कावेरी डेल्टा के कृषि क्षेत्र का हिस्सा बन गया था। इस दौरान सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ किया गया, जिससे गांव के कृषि और व्यापार में वृद्धि हुई। आजादी के बाद, इस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का विकास हुआ और गांव का धार्मिक महत्व बनाए रखा गया।
वक्फ बोर्ड का दावा और विवाद
हाल के वर्षों में, तिरुचेंथुरई का विवाद तब शुरू हुआ जब वक्फ बोर्ड ने इस गांव की 480 एकड़ जमीन को अपनी संपत्ति बताकर उस पर दावा किया। वक्फ बोर्ड का दावा है कि यह भूमि 18वीं शताब्दी में नवाब अनवर-उद-दीन खान द्वारा दान की गई थी। हालांकि, इस दावे को लेकर स्थानीय हिंदू समुदाय और मंदिर के समर्थक विरोध में हैं। उनका कहना है कि यह भूमि पहले ही शिवजी को समर्पित की जा चुकी है, और इसे किसी अन्य को दान नहीं किया जा सकता।
इस विवाद में जटिलता और भी बढ़ जाती है, क्योंकि कुछ रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि 17वीं शताब्दी में रानी मंगम्मल ने भी इस क्षेत्र में दान किया था। लेकिन यह दावा अब तक आधिकारिक रूप से प्रमाणित नहीं हुआ है।
वक्फ के दावे का विरोध
गांव के हिंदू समुदाय और मंदिर के समर्थक इस दावे का विरोध करते हुए कहते हैं कि यह भूमि और मंदिर हिंदू धरोहर का हिस्सा हैं, और इसे चोल काल से संरक्षित किया गया है। उनका तर्क है कि जिस मंदिर और भूमि को शिवजी को समर्पित किया गया हो, उसे किसी अन्य के द्वारा दान नहीं किया जा सकता।
यह विवाद अब एक कानूनी और धार्मिक मुद्दा बन गया है, जिसमें तिरुचेंथुरई की 2000 साल पुरानी धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत का बचाव किया जा रहा है।
क्या है पूरा मामला?
तिरुचेंथुरई के 1500 साल पुराने मणेंडियावल्ली चंद्रशेखर स्वामी मंदिर की भूमि पर वक्फ बोर्ड ने अपना मालिकाना हक जता दिया है। मंदिर के पास स्थित गांव और आसपास की लगभग 369 एकड़ भूमि पर यह विवाद खड़ा हो गया है। हाल ही में, गांव के किसान राजगोपाल ने अपनी 1.2 एकड़ जमीन को बेचने का प्रयास किया, लेकिन जब उन्होंने विक्रय संबंधी औपचारिकताएं पूरी करने के लिए रजिस्ट्रार के दफ्तर में आवेदन किया, तो उन्हें बताया गया कि यह जमीन उनकी नहीं बल्कि तमिलनाडु वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। उन्हें वक्फ बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) लाने के लिए कहा गया।
इस दावे ने न सिर्फ राजगोपाल बल्कि पूरे गांव के लोगों को हैरान कर दिया। क्योंकि यह मामला केवल एक किसान का नहीं बल्कि पूरे गांव का है, जहां 1500 साल पुराना हिंदू मंदिर (चंद्रशेखर स्वामी मंदिर) स्थित है। यह स्थिति काफी हास्यास्पद लगती है कि एक 1400 साल पुराना धार्मिक बोर्ड 1500 साल पुराने मंदिर और उसके आस-पास की भूमि पर दावा कर रहा है। राजगोपाल के अनुसार, रजिस्ट्रार ने उन्हें बताया कि तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने डीड्स विभाग को 250 पन्नों का एक पत्र भेजा था, जिसमें यह कहा गया कि तिरुचेंथुरई गांव में किसी भी भूमि का लेन-देन केवल वक्फ बोर्ड के अनापत्ति प्रमाण पत्र के साथ ही किया जा सकता है।