केंद्र की कार्रवाई से घबराए नक्सली, सुरक्षाबलों के अभियानों पर रोक लगाने की मांग के साथ सरकार के सामने पेश किया शांति प्रस्ताव
गडचिरोली: नक्सलियों ने केंद्र सरकार से संघर्ष विराम की अपील, शांति प्रस्ताव पेश
गडचिरोली, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा और झारखंड में पिछले दो वर्षों से जारी नक्सल विरोधी अभियानों से घबराए नक्सलियों ने केंद्र सरकार के समक्ष शांति प्रस्ताव रखा है। नक्सली केंद्रीय कमेटी के सदस्य अभय उर्फ सोनू भूपति ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए इन अभियानों पर रोक लगाने की मांग की है। यह नक्सलियों द्वारा दो दशकों में पहली बार शांति प्रस्ताव पेश किया गया है, जिसके बाद सभी की निगाहें केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया पर टिकी हुई हैं।
24 मार्च को हैदराबाद में हुई गोलमेज बैठक में यह निर्णय लिया गया कि मध्य भारत में नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच चल रहे संघर्ष को समाप्त कर शांति वार्ता की जानी चाहिए। गृह मंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद खत्म करने का लक्ष्य रखा था, जिसके बाद छत्तीसगढ़, गढ़चिरोली, तेलंगाना, ओडिशा और झारखंड में नक्सल विरोधी अभियान और तेज कर दिया गया। इन अभियानों में 15 महीनों में 400 से ज्यादा नक्सली मारे गए और सैकड़ों लोग गिरफ्तार हुए हैं। नक्सलियों का आरोप है कि इनमें कई निर्दोष आदिवासी भी मारे गए।
नक्सली नेता अभय उर्फ सोनू भूपति ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें नक्सल प्रभावित इलाकों में अघोषित युद्ध छेड़े हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा ने शांति वार्ता के लिए तैयार होने का दावा किया था, लेकिन नक्सलियों के प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है, जबकि आदिवासी समुदाय अपने जल, जंगल, जमीन और संस्कृति के लिए संघर्ष कर रहा है।
भूपति ने भीमा कोरेगांव मामले का भी जिक्र किया और आरोप लगाया कि शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाले कार्यकर्ताओं को सरकार सताती है, जबकि आदिवासियों को पुलिस बल में भर्ती कर उनके खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल किया जा रहा है। नक्सलियों ने शांति वार्ता के लिए पुलिस भर्ती, नए पुलिस थानों के निर्माण और नक्सल विरोधी अभियानों पर रोक लगाने की शर्त रखी है।